स्वामी नीलकंठ फॉउन्डेशन
स्वामी नीलकंठ
श्री नीलकंठ महाराज के गुरू परमपूज्य श्री ब्रम्हदास जी महराज एवं दादा गुरू परमहंस अनंत श्री विभूषित जहरी दादा थे। जहरी दादा का प्रमुख आश्रम इलाहाबाद के पास सराय अकिल में था और श्री नीलकंठ महाराज की (जिनका पहले नारायणदास नाम था) इसी आश्रम से दादा गुरू जहरी दादा के कृपामय सानिध्य मं 05 वर्ष की अवस्था में तपस्चर्या प्रारंभ हुई। गुरू श्री ब्रम्हदास जी महराज और दादा गुरू जहरी दादा भी घोर तपस्या करने वाले परम् दीर्घजीवी संत थे। ऐसा माना जाता है कि इन्होने लगभग 450 वर्ष का जीवन काल जिया था, तथा इच्छामृत्यु से समाधिस्थ हुए।
महाराज नारायणदास जी ने हिमालय की गुफाओं में कठिन तपस्या करने के बाद वाराणासी, इलाहाबाद, मथुरा,-वृन्दावन में भी तपस्या की थी।
स्वामी नारायणदास जी महाराज मैंहर में महाराजा बृजनाथ सिंह जी के शासनकाल में यहां मॉ शारदा के दर्शन करने आए और फिर माता जी सानिध्य में ही रूक गए और आल्हा तालाब के पश्चिम में एक गुफा में मॉ शारदा की आराधना करने लगे। इस गुफा को पुरानी कुटी के नाम से जाता है।
कालान्तर में स्वतंत्रता संग्राम के समय एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को फांसी न देने के इनके आदेश को महाराजा बृजनाथ सिंह जी द्वारा न मानने पर नाराज होकर वह पुरानी कुटी छोड़कर रामपुर पहाड़ (नागौद क्षेत्र) में चले गए, जहॉ एक शेर की गुफा में उसके साथ रहते हुए तपस्या करने लगे। यहीं उन्होनें रामपुर मंदिर निर्माण कराकर गोविन्द सरकार (राधाकृष्ण), दुर्गा जी एवं शिव जी की स्थापना करायी। एक दिन ब्रम्ह-मुहूर्त में रात्रि के अंधेरे में स्वामी श्री नारायणदास जी महाराज श्री शिव जी को स्नान कराने गए, जहां शिव जी के ऊपर बैठे एक विषधर नाग ने उन्हें काट लिया। भक्त जन एवं सेवक घबड़ा गए। तब रामपुर जाने की वर्तमान सड़क नहीं थी दो पहाड़ों के बीच से पगडंडी से आना-जाना होता था। कुछ भक्त मैंहर आए और डॉक्टर को लेकर रामपुर गए, जिन्हें रामपुर पहुॅचते-पहुॅचते संध्या हो गई थी। महाराज श्री नारायणदास जी अपनी धूनी में बैठे ध्यान कर रहें थे। नाग के काटने का निशान नाभि के पास पड़ गया था। महाराज जी ने डॉक्टर एवं सभी भक्तों को प्रसाद एवं आर्षीवाद देकर वापस कर दिया, उन्हें किसी औषधि की जरूरत नही पड़ी। तब से नाग का विष सहन करने की शक्ति होने के कारण से भक्तों ने उन्हें नीलकंठ महाराज कहना आरंभ कर दिया और यहॉ से उनका श्री नीलकंठ महाराज के रूप में नाम इतना प्रसिद्ध हुआ, कि कुछ लोग ही उन्हें महाराज श्री नारायण जी महाराज के नाम से जानते है। इसके बाद से उन्हें श्री नीलकंठ महाराज जी के नाम से जाना जाने लगा। मैहर-सतना रोड मे ओइला में भी महाराज जी का एक आश्रम है, जिसे गोविन्द बाग ओइला आश्रम कहा जाता है। इसमें बिही का बगीचा था, इस बगीचा स्थल को ज्ञान गुदड़ी कहते थे और महाराज जी इसके विभिन्न स्थानों में बैठकर ध्यान करते थे। परम् पूज्य श्री नीलकंठ जी महराज अपने जीवन के संध्याकाल में अधिकाधिक समय गोविन्द बाग ओइला आश्रम में ही रहते थे और वह यहीं संवत् 2042 फाल्गुन कृष्णपक्ष तेरह, महाशिवरात्रि दिनांक 08 मार्च 1986 को समाधिस्थ हुए। उनके समाधि के समय क्षेत्र से जन सैलाब उमड़ पड़ा और प्रशासन की भारी व्यवस्था के बीच उपस्थित संत समाज, महाराज श्री के शिष्य मंडल और विद्धत जनों ने वैदिक रीति-रिवाज से उनके सेवारत् श्रेष्ठ शिष्य स्वामी श्री बम महादेव दास जी को तिलक लगाकर एवं गंगाजल से अभिषिक्त कर श्री नीलकंठ महाराज का उत्तराधिकारी घोषित करते हुए उन्हें महाराज जी की गद्दी में पीठासीन किया गया। तत्पश्चात उनके उत्तराधिकारी शिष्य के रूप मे स्वामी श्री बम महादेव दास ने वैदिक मंत्रोंच्चार के बीच परम् पूज्य अनंत श्री विभूषित श्री नीलकंठ महाराज को समाधि दिया। बाद में पीठसीन महंत श्री बम महादेव दास द्वारा यहां एक विषाल हाल का निर्माण कराकर उसमें विभिन्न देवतओं की मूर्तिया स्थापित कराई गई है। इसमें श्री अष्टभुजी दुर्गा जी की विषाल अष्टधातु की प्रतिमा प्रमुख है। इसके अतिरिक्त इसमें श्री शिव-पार्वती, श्री राम-जानकी, श्री नीलकंठ महाराज, श्री राधा-कृष्ण, श्री दुर्गा जी, श्री गणेष जी, श्री काली जी, उदासीन संप्रदाय के परमाचार्य श्री श्रीचंद महाराज एवं श्री हनुमान जी तथा अष्टधातु का शिवलिंग, एवं नन्दी जी की प्रतिमा स्थापित करायी। इस हाल के सामने ही महंत स्वामी श्री बम महादेव दास जी द्वारा भगवान श्री लक्ष्मी-नारायण का विषाल मंदिर का निर्माण कराया गया है, साथ ही आश्रम में श्री नीलकंठ महाराज का भव्य समाधि स्थल बनाकर उसमें उनकी मूर्ति स्थापित कराई गई है।
ब्रम्हलीन स्वामी श्री नीलकंठ जी महाराज के समय में गोविन्द बाग ओईला में केवल भैया ढेलाराम जी के दो मंदिर, एक शिव मंदिर और यज्ञशाला थी। इस आश्रम से लगी हुई भूमि भी बहुत कम थी और कृषि भूमि भी नगण्य थी, परंतु पीठासीन महंत स्वामी श्री बम महादेव दास जी की कर्मठता, तत्परता, सेवा एवं समर्पण के कारण उनके अथक प्रयास से आश्रम का भव्य विकास हो सका। इसी आश्रम के आधीन लखराम बाग खितौला सिहोरा, जिला जबलपुर में भी श्री नीलकंठ आश्रम हैं, जहा स्वामी श्री नीलकंठ महाराज जी के समय केवल भैया ढेलाराम जी की मूर्ति जिसके लिए आश्रम का अद्भुत विकास हुआ और भव्य एवं विशाल हाल का निर्माण के साथ ही श्री दुर्गा जी, श्री लक्ष्मी-नारायण, श्री राधा-कृष्ण, श्री शिव-पार्वती, श्री रामजानकी, श्री हनुमान जी और एक विशाल शिवलिंग तथा नन्दीश्वर भगवान की स्थापना कराई गई।
ब्रह्मलीन स्वामी नीलकण्ठ जी महाराज जी के गुरुपुत्र, श्री श्री १०८ स्वामी श्री बम महादेव दास जी के समर्पण सेवा, कर्मठता एवं अथक प्रयास से आश्रम के विकास हेतु मैहर क्षेत्र में शिक्षा की ज्योति जलाने के लिए प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय, बी.एड कॉलेज, विधि महाविद्यालय एवं अनेक ऐसी कई योजनाएं कार्यन्वित हुईं हैं जिससे मैहर तहसील के आमजन लाभान्वित हो रहे हैं| आज भी परम पूज्य गुरु महाराज के सपनों को सार्थक करने में दिन-रात इनका प्रयास सतत रूप से निर्बाध चल रहा है| समस्त मानव जाति हेतु गुरु महाराज एक ऐसे स्रोत्र हैं जिनका जितना भी वर्णन किया जाए कम है|